BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

संस्कृत साहित्य के इतिहास का उद्देश्य - संस्कृत भाषा और साहित्य के विकास का ज्ञान उसके इतिहास से मिलता है। युगों से विभिन्न प्रवृत्तियों के कारण जो साहित्य प्रकार विकसित हुए हैं, उनका आकलन इतिहास में होता है। हजारों ग्रन्थों की राशि में गुण और महत्व की दृष्टि से चुने हुए ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इतिहास दे देता है तथा पूरे वाङ्मय में उस ग्रन्थ की स्थिति भी बताता है। अकेले पाठक को सम्पूर्ण वाङ्मय का कम समय में परिचय देना इतिहास का काम है। संस्कृत भाषा न जानने वाले लोग भी साहित्य के इतिहास से ग्रन्थों तथा ग्रन्थकारों के विषय में एवं उनके उद्भव की स्थितियों को जान सकते हैं। यह संस्कृत साहित्य के इतिहास की उपयोगिता है।

संस्कृत साहित्य एवं समकालीन प्रवृत्तियाँ विभिन्न युगों में जो संस्कृत साहित्य का विकास हुआ वह तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप था। साहित्य के अनुशीलन से उन परिस्थितियों का अनुमान होता है। वस्तुतः जनसामान्य को ध्यान में रखकर ही साहित्यिक प्रवृत्तियाँ पनपती हैं। वैदिक साहित्य के विकास में तात्कालिक धार्मिक जीवन का आभास मिलता है। उस युग में यह भाषा लोक-व्यवहार में भी थी, किन्तु यज्ञानुष्ठान, नैतिक नियमों का अनुपालन तथा प्रकृति के उपादानों के प्रति श्रद्धा की भावना का मूल्य अधिक होने से इन पर बल देने वाला वैदिक साहित्य ही सुरक्षित रह सका है। लौकिक साहित्य में लौकिक भावनाओं का प्रकाशन करने वाली सामग्री अत्यल्प है।

लौकिक संस्कृत साहित्य के आरम्भ काल में रामायण में सुन्दर भाषा में आदर्श की स्थापना की गई, जबकि महाभारत में इतिहास के बहाने राजनीति, धर्म, समाज और संस्कृति का यथार्थ रूप प्रकाशित हुआ। पुराणों में सम्पूर्ण भारत के तीर्थ स्थलों, आख्यानों एवं इतिहास के अतिरिक्त ज्ञान के अन्यान्य क्षेत्रों को आलोकित करने की प्रवृत्ति है। इन तीनों का अवगाहन जन-जन की अनौपचारिक शिक्षा का स्वरूप था।

परवर्ती साहित्य के विकास में विविध प्रवृत्तियाँ काम करती हैं। आरम्भिक नाटकों तथा काव्यों में भाषा की सरलता यह प्रकट करती है कि सरल संस्कृत व्यापक रूप से प्रचलित थी। अनेक क्षेत्रों में जनता संस्कृत और प्राकृत दोनों समझती और बोलती भी थीं। आगे चलकर संस्कृत का भाषिक अनुशासन कठोर हो जाने पर साधारण जनता संस्कृत छोड़कर प्राकृत (तथा अपभ्रंश) की ओर प्रवृत्त होने लगी। किन्तु परिनिष्ठित शिक्षा संस्कृत माध्यम से होने के कारण, शिक्षितों के अनुरूप, संस्कृत साहित्य क्रमशः कठिन होता गया। इस स्थिति में पाण्डित्यपूर्ण काव्य-नाटक, गद्य, पद्य आदि रचे गए। अधिसंख्य साहित्यिक रचनाएँ राजाश्रय में लिखी गईं जिनमें यथार्थ से अधिक अलंकृत अभिव्यक्ति पर बल दिया गया। जनरुचि ऐसी रचनाओं के प्रति हो गई।

भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमणों के बाद संस्कृत की धारा पारम्परिक काव्य शैली में नाटक, चम्पू, गद्य-काव्य द्वारा देशी राजाओं की विजय अथवा व्यक्ति-विशेष के वर्णन में प्रवृत्त हुई। दूसरी ओर कुछ काव्यों में विदेशियों के साथ युद्धों का भी निरूपण हुआ।

आधुनिक काल में सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं की ओर संस्कृत साहित्यकारों का ध्यान गया। स्वाधीनता संग्राम में साहित्य की सर्जना कहीं प्रतीकात्मक तो कहीं प्रत्यक्ष रूप से हुई। आज का संस्कृत साहित्य (काव्य, नाटक, लघुकथा, उपन्यास आदि) विधवा-विवाह, दहेज-प्रथा, भ्रष्टाचार, राजनीति, शिक्षा का क्षरण इत्यादि विविध विषयों को रेखांकित करते हुए लिखा गया है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में उतना वैविध्य नहीं था जितना आधुनिक संस्कृत में मिलता है। विभिन्न युगों की प्रवृत्तियों को संस्कृत साहित्य की परम्परा ने आत्मसात् किया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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